क्या अर्दोआन की जाने वाली है कुर्सी, तुर्की में आखिर कौन होगा नया राष्ट्रपति? तैयब अर्दोआन या फिर मुख्य प्रतिद्वंद्वी कमाल कलचदारलू, पहले मरहले की वोटिंग में नहीं मिली किसी को 50% से अधिक वोट
तुर्की : तुर्की में नए राष्ट्रपति को चुनने के लिए एक बार फिर से वोटिंग होगी ,क्युकी पहले राउंड में राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोआन और उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी कमाल कलचदारलू, दोनों को ही पचास फ़ीसदी से अधिक वोट नहीं मिल सके ।इस लिए तुर्की में एक बार से 28 मई को वोटिंग होगी ।
28 मई को अब तुर्की में होगा निर्णायक मुक़ाबला
आपको बता दें कि साल 2002 से सत्ता पर क़ाबिज़ अर्दोआन को 49. 49 फ़ीसदी मतों के साथ बढ़त मिली।तो वहीं अर्दोआन समर्थकों का मानना है कि अर्दोआन दोबारा चुनाव जीत जाएंगे ,ऐसे में ये जबरदस्त टकराव बड़ा ही दिलचस्प हो गया है अब देखते हैं क्या होता है ?
वहीं, दूसरी तरफ अर्दोआन को कड़ी टक्कर देने वाले और विपक्षी कमाल कलचदारलू को 44.79 फ़ीसदी मत मिले हैं। उन्होंने भी दूसरे राउंड में चुनाव जीतने का दावा किया है।लोगों का कहना है कि तुर्की में बहुत सालों बाद सबसे मुश्किल चुनाव हो रहा है। 8.5 करोड़ की आबादी वाले देश में महंगाई चरम पर है, उस पर इसी साल फ़रवरी में आए भीषण भूकंप ने तुर्की को पूरी तरह झकझोर कर रख दिया है।राष्ट्रपति चुनाव न सिर्फ़ ये तय करेगा कि तुर्की का नेतृत्व किसके हाथों में होगा, बल्कि इससे ये भी तय होगा कि क्या तुर्की एक बार फिर से ‘धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक’ रास्ते पर लौटता है या नहीं।
अब ये तो वहां की जनता ही तय कर पाएगी कि वह क्या चाहती है ,अर्दोआन या फिर मुल्क में तब्दीली चाहती है अब ये तो 28 मई को ही पता चल जाएगा ।आखिर वहां की जनता क्या चाहती है।
आखिर दूसरे राउंड की ज़रूरत क्यों पड़ी ?
तुर्की में राष्ट्रपति चुनाव में दोनों में से किसी एक नेता या पार्टी का 50 फ़ीसदी से अधिक वोट पाना ज़रूरी है।अगर पहले राउंड में किसी उम्मीदवार को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो रन-ऑफ़ राउंड में पहले दो उम्मीदवारों को सबसे अधिक वोट मिलने वालों के बीच मुक़ाबला होता है। यहां पर अर्दोआन बस थोड़े से वोट से 50 फीसदी तक नहीं पहुंच सके।तो दोनों नेताओं को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया ।जिसके कारण दूसरे राउंड वोटिंग की जरूरत पड़ी,और आपको बता दूं कि दो सप्ताह के भीतर दूसरे राउंड की वोटिंग होती है जो 28 मई को होनी है।
अभी तक के नतीजों में कौन किस पर भारी
विपक्ष के नेता कमाल कलचदारलू को ‘कमाल गांधी’ भी कहा जाता है , यहां तक कि उन्हें तुर्की का गांधी भी कहा जाता है। उन्होंने भरोसा जताया है कि वो रनऑफ़ वोट में जीतेंगे। साथ ही उन्होंने अपने समर्थकों से सब्र रखने के लिए कहा है और अर्दोआन की पार्टी पर मतगणना और नतीजों की रिपोर्टिंग में दखलअंदाज़ी का आरोप भी लगाया है।
अर्दोआन ने चुनाव से पहले दिए गए अनुमानों की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया
अर्दोआन ने कहा, “हम अपने चुनावी प्रतिद्वंद्वी से अभी ही 26 लाख वोटों से आगे चल रहे हैं ।हमें उम्मीद है कि ये फ़ासला और बढ़ेगा” ।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, तुर्की के हाई इलेक्शन बोर्ड (एचसीबी) ने 91.93 फ़ीसदी मतों की गिनती के बाद अर्दोआन के हिस्से में 49.49 फ़ीसदी वोट दिए हैं।
चुनाव में कौन से मसले हावी हुए
तुर्की के इस चुनाव में दो सबसे बड़े मुद्दे जिन्होंने तुर्की के 6.4 करोड़ मतदाताओं को प्रभावित किया वो हैं- महंगाई और दो शक्तिशाली भूकंप के झटके।आपको बता दूं तुर्की के 11 प्रांत इस भूकंप से प्रभावित हुए थे। अर्दोआन की सरकार पर भूकंप प्रभावितों को बचाव और राहत के कार्यों में ढिलाई बरतने का आरोप लगता है।आधिकारिक आंकड़ों की मानें तो तुर्की में महंगाई दर क़रीब 44 फ़ीसदी तक पहुंच गई है, लेकिन कई लोग वास्तवकि तस्वीर इससे भी भयावह बताते हैं।शायद यही वजह हैं जो अर्दोआन को बहुमत से करीब लाकर छोर दिया ।
69 साल के अर्दोआन आज तक इससे पहले कभी इतने दबाव में नहीं दिखे
उनकी एके पार्टी साल 2002 से सत्ता में रही है और अर्दोआन 2003 से देश का नेतृत्व कर रहे हैं।पहली बार मतदान करने वाले क़रीब 50 लाख मतदाताओं ने कभी किसी दूसरे नेता को जाना ही नहीं।शुरुआत में अर्दोआन प्रधानमंत्री थे, लेकिन साल 2014 में वो राष्ट्रपति बने ।हालांकि, कई मतदाता अब दो दशक के बाद बदलाव भी चाहते हैं । अब देखते हैं क्या होता है 28मई का इंतज़ार है।
किन दो पार्टियों के बीच चुनाव
राष्ट्रपति अर्दोआन की पार्टी का नाम एकेपी (जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी) है जबकि प्रमुख विपक्षी दल रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी नेशन अलायंस के तहत पांच अन्य दलों के साथ मिलकर चुनाव मैदान में है ।तो वहीं विपक्षी पार्टियों ने रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी के कमाल कलचदारलू को अपना उम्मीदवार बनाया है।तीसरे उम्मीदवार सिनान ओगान हैं। इन्हें पाँच फ़ीसदी के आसपास वोट मिले हैं।हालांकि, उनके जीतने की संभावना चुनाव से पहले भी न के बराबर थी।
साल 2018 में दूसरे स्थान पर रहे मुहर्रम इंचे ने इस बार वोटिंग से तीन दिन पहले ख़ुद को राष्ट्रपति पद की दौड़ से बाहर कर लिया था। हालांकि, बैलट पेपर पर उनका नाम दर्ज था।
अर्दोआन की एकेपी ने भी अपने गठबंधन में दो कंज़रवेटिव पार्टियों को जोड़ा है।कई लोगों का मानना है कि राष्ट्रपति अर्दोआन के 2003 में सत्ता में आने के बाद से तुर्की को एक रूढ़िवादी सोच वाला देश बनाने की कोशिश में लगे हैं।
तुर्की में ये मानने वाले लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है। कि अर्दोआन की ब्याज दर न बढ़ाने की सोच ही देश में बढ़ती महंगाई का कारण है। तो वहीं दूसरी तरफ उनके प्रतिद्वंद्वी कमाल कलचदारलू ने वादा किया है कि नेटो का सदस्य देश तुर्की एक बार फिर से अर्दोआन की नीतियों से उलट उदारवादी रुख़ अपनाएगा।
सभी खबरों के लिए stop24seven को सब्सक्राइब ज़रूर करें यूट्यूब aur fACEBOOK पर भी आप हम देख सकते हैं।