रवीश कुमार के मां का हुआ निधन ,सीएम नीतीश कुमार ने जताया शोक
बिहार: हमारे देश के एक महान ,बेखौफ और एक सच्चा पत्रकार ने आज अपनी मां को खो दिया। मां को खोने का दर्द सिर्फ एक वही इंसान समझ सकता है जिसने अपनी मां को खोया हो । इंसान चाहे कितना भी बड़ा हो जाए। लेकिन वह अपनी मां की नजर में एक छोटा बच्चा ही रहता है जो हमेशा अपनी मां की गोद में रहना चाहता है। इस दुख की घड़ी में हम लोग रविश कुमार के साथ हैं ,खुदा उनको सब्र दे।
आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि हमारे देश के वरिष्ठ पत्रकार की मां यशोदा पांडेय का निधन हो गया है । बताया जा रहा है कि वह काफी लंबे समय से बीमार चल रही थी।
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि रवीश कुमार की मां अब इस दुनिया में नहीं रही। हम लोगों के लिए दुख भरी खबर है।वहीं दूसरी और आपको बता दूं कि रवीश कुमार की मां के निधन की खबर मिलने के बाद सोशल मीडिया पर उनके चाहने वाले ने रवीश कुमार के प्रति शोक संवेदना व्यक्त कर रहे हैं और उनकी मां को श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
मैं आपको बताते चलूं कि इन दिनों रविश कुमार विदेश यात्रा पर हैं और उन्होंने अपने यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो दाली थी ।जिसमें उन्होंने बताया था कि वे अभी बेल्जियम में हैं। वैसे आपको बता दू की रवीश कुमार मूल
रूप से बिहार के मोतिहारी जिला के रहने वाले है।
* सीएम नीतीश कुमार ने जताया शोक
बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार की मां के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है ।
उन्होंने अपने ट्वीट के जरिए कहा की वरिष्ठ पत्रकार श्री रविश कुमार जी की माता जी यशोदा पांडेय जी का निधन दुखद है ।वे एक सामाजिक और धर्मपरायण महिला थीं ।
दिवंगत आत्मा की चिर शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना है।
रवीश कुमार ने मां के निधन पर डाली भावुक पोस्ट
रवीश कुमार ने अपनी मां के निधन की खबर मिलते ही सोशल मीडिया पर एक भावुक पोस्ट डाली है ।इसमें उन्होंने अपने माताजी के निधन की खबर दी है ।और साथ ही उन्होंने अपने ह्रदय में उठ रहे उदगारों को व्यक्त किया उन्होंने लिखा है कि …….
मां
सोचा था ब्रसेल्स को अपने लिए नहीं, अपने दर्शकों के लिए देखूंगा। यहां आते ही सब कुछ कैमरे के पीछे से देखने लगा। जहन में मां बनी रही कि वेंटिलेटर पर नहीं होती तो ज्यादा खुश रहती, भले ही ब्रस्लस बोलना उसके लिए भारी हो जाता। इस सूचना को लेकर अपने साथ जीना पहाड़ ढोने के समान लग रहा है। यहां की इमारतों से न तो इतिहास का, रिश्ता बना पा रहा हूं, ना वर्तमान का। देख रहा हूं मगर कुछ दिख नहीं रहा है, चल रहा हूं लेकिन पता नहीं कितना दूर चल गया और लौटकर आ गया। इस वक्त लिख रहा हूं ताकि खुद के साथ रह सकूं। मेरे लिए जीना लिखना है और लिखते लिखते उसकी हंसी बार-बार लौटकर आ रही है। उसके लिए यहां की तस्वीर कितनी ख़ास होती मगर अब उसी के कारण सब कुछ उज़ार लग रहा है। दिन के वक्त यहां पांव रखने की जगह नहीं होती। सुबह-सुबह इसके खाली अहाते को देखना उस रिक्तता में प्रवेश करने जैसा था, जिसे कोई मेरे जीवन में बना गया था। 15वीं सदी की इस इमारत के चौकोड़पन में उसकी ममता का गोल पन खोज रहा था। ख़बरें कितनी जल्दी दूरी तय कर लेती है बिना तार और इंटरनेट के उसकी पूरी दुनिया मुझ में सिमट आई। मैं इस इमारत को अपनी शुन्यता से देख रहा था कुछ लोग इस इमारत से जीवन भर का रिश्ता जोड़ने के लिए तरह-तरह की भंगिमा में तस्वीरें ले रहे थे। कैमरे और किरदार अदल- बदल हो रहे थे ।हल्की ठंड से भरी हवा में वेंटिलेटर की आवाज सुनाई दे रही थी। इन इमारतों की दीवारों पर लग रहा था कि कोई ऑक्सीजन चढ़ा रहा है किसी मूर्ति का ब्लड प्रेशर कम हो गया है। अचानक कोई दौरा आ रहा है और सब थाम ले रहा है, एक पल में या इमारत ध्वस्त होती है मगर दूसरे पर में कोई बचा लेता है फेफड़े के बिना इंसान कब तक सांस ले सकता है। बहुत सारी दवाईयां फेफड़े को साफ कर सकती है मगर दूसरा फेफड़े नहीं बना सकती है ।मैं किसी का कैमरा थाम लेता हूं, वह किसी और देश का मालूम होता है। मैं भी तो किसी और देश का हूं।
ब्रसेल्स से कभी नाता नहीं रहा अपने जीवन में जिन देशों को जाना, उनमें बेल्जियम कभी था ही नहीं और जिस घर से मेरा जीवन भर का नाता है, वहां आज मां नहीं है लग रहा है कि ग्रैंड पैलेस की इस इमारत के एक हिस्से से निकल पारस के डॉक्टर प्रकाश दौड़े जा रहे हैं। उनकी टीम एक पांव पर खड़ी हो गई है। एम्स के डॉक्टर अजीत अपने अस्पताल के चौरे गलियारे में भागे आ रहे हैं। इन दोनों डॉक्टरों और उनकी टीम ने कोशिश में कोई कमी नहीं की।
इनकी कोशिश से ही उम्मीद का आधार चौड़ा होता जा रहा था। डॉक्टर अजय का खांटिपन हौसला दे रहा था कि एकदम घर जाएंगी। आप सभी ने मुझे उस अपराध बोध में डूबने से बचा लिया कि हम कुछ नहीं कर सके। लेकिन चारों तरफ से टूटी हुई उम्मीदों के बीच भी कोई ना कोई बांस की दो फट्टियों को जोड़ रहा होता है। जोड़कर छत बना लेने के लिए या नाव बना लेने के लिए, डॉक्टर प्रकाश और डॉक्टर अजीत अभी भी दो फट्टियों को जोड़ते नजर आ रहे हैं।
मैं सोच रहा हूं डॉक्टर की भी तो हताशा होती है वह भी तो किसी मरीज के जीवन का हिस्सा हो जाता है मरीज को खोने के बाद डॉक्टर कितना खाली हो जाता होगा। उसे तो फिर से किसी और मरीज को इसी हालत से निकाल लाने में जुटना होता है क्या वह हार जाता होगा ?फिर वह अगला संघर्ष कैसे करता होगा ? उन्हें मरीजों के परिजनों से नजर मिलाने में कितनी मुश्किल होती होगी। आज हम इन दोनों डॉक्टर को श्रद्धा से याद कर रहे हैं। ब्रसेल्स में कहीं से एंबुलेंस की आवाज आ रही है लग रहा है कि मां को लेकर एक बार फिर से अस्पताल जा रहे हैं। यही आ गए हैं, लेकिन इस जगह का खालीपन मुझे अपनी बाहों में समेट रहा है बिहार दूर है ब्रसेल्स और भी दूर है ..सबकुछ ठहर गया है।
ग्रैंड पैलेस कहा अहाता मेरे घर के पीछे का आंगन लग रहा है। उसके भगवान जी आज वीरान हो गए हैं। जिनके चरणों में फूल चढ़ाना उसके लिए पहला काम होता था। बहुत दिनों से किसी ने फूल भी नहीं तोड़े हैं। उस पूजा में मैं हमेशा होता था, कहती थी कि तुम्हारे लिए कवच तैयार कर रही हूं, रक्षा होगी मुझे कभी पीछे हटने को नहीं कहा। हर पुरस्कार उसका होता था ,हर पुरस्कार के साथ वह अपने दिनों को याद करने लग जाती। इन पुरस्कारों के नाम भले ना बोल पाती हो, मगर उसकी मुस्कुराहट मुझ में जान डाल देती थी ।उसी के लिए ब्रसलस चला आया ,वही चली गई.. कई दिनों से इस भवर में था कि जाता हूं, नहीं जाता हूं फिर चला गया कि अभी आता हूं ,वह मुझे भेजना चाहती थी इसलिए सब कुछ कंट्रोल में होने का भ्रम बनाए रखीं।
उसके साथ मेरे जीवन में सब्र का खजाना चला गया। हर मुसीबत में उसका सब्र ही था जो काम आता था सर्दी के देश में आया था, तुम्हारे लिए गर्म मोजे, टोपी, जाने क्या क्या देखता , खरीदता, अगली सर्दी के लिए। इस बार की गर्मी बहुत लंबी हो गई मां आज का पुरस्कार तुम्हारी ही है, पर तुम नहीं हो, वो गांव भी अब गांव नहीं रहा जिसे हम तुम्हारी वजह से जीते थे, वहां जाते थे यशोदा का नंदलाला… बृज का उजाला… है मेरे लाल से सारा जग ……कहो तो गाऊं …