शरीक ए हयात पार्ट 2, यह कहानी बिल्कुल सच्ची है
अब आगे….
हल्दी मेहंदी सब की रस्म अदा हो गई मैं भी ना चाहते हुए भी खुद को सारी जिम्मेदारियों के लिए तैयार कर लिया!
मेरी बारात जा रही थी ,मन में कितने अरमान थे, जब पढ़
लिख जाऊंगा तब शादी करूंगा !
खैर अब तो मैं सेहरा बांध चुका था!
इसलिए सब सोचने का कोई फायदा ही नहीं ,मेरी बहनें मेरी बलाएं ले रही थी !
गीतों की आवाज से घर गूंज रहा था!
बारात पहुंच गई !बारातियों की खातिरदारी की गई, उसके बाद निकाह पढ़ाया गया!
जब मौलाना ने मुझसे पूछा कि आपको कबूल है !
तो ऐसा लग रहा था ,जैसे मेरी जुबान लड़खड़ा रही हो बदन सुन्न हो गए!
माथे पर पसीने की बूंद टपकने लगी मैंने उसे कबूल करते वक्त यही सोचा ,क्या मैं उसकी सारी जिम्मेदारी निभा सकूंगा! क्या मैं इस रिश्ते पर खरा उतरूंगा!
क्या उसके सारे अरमान मैं पूरा करने के काबिल हूं?
मन में बहुत सारे सवाल थे पर एक का भी जवाब मेरे पास नहीं था!
खुद को सोच सोच कर परेशान नहीं करना चाहता था!
बाकी रस्म अदा होने के बाद बेबी की रुखसती मेरे साथ कर दी गई!
वह मेरे बगल में बैठी सिसक सिसक कर अब भी रो रही थी, अपनों से बिछड़ने का गम जो था !
अब वह मेरे अधीन थी, हमारे समाज में हम लड़कियों को यही सिखाते हैं! पति परमेश्वर है !
चाहे रक्षक हो या भक्षक उसकी हां हां है,और ना ना है!
गाड़ी अपने तेज रफ्तार से थी!
उसके सिसकियों को मैं भी महसूस कर रहा था !
एक बार दिल चाहा कि उसके मेहंदी लगे हाथों को जिसमें मेरे नाम की मेहंदी लगी थी!
उसे अपने मजबूत हथेली में दबाते हुए तसल्ली दूं!
हाथ बढ़ा रहा था!
पर हाथ आगे नहीं बढ़ रहे थे ,मन ही मन में खुद को हिम्मत देने लगा!
ऐसा नहीं कर पाया यही सोचते-सोचते गाड़ी मेरे गांव के इलाके में आ गई!
मैंने ड्राइवर को कहा बस और 5 मिनट उसके बाद हम घर पहुंच जाएंगे!
ड्राइवर शीशे में देख मुस्कुराने लगा उसे लगा !
उसे लगा कि यह इशारा उसके लिए नहीं! बल्कि ,मेरी बगल में जो दुल्हन बैठी है! उसके लिए मैंने देखा उसने खुद को समेट लिया उसकी सिसकियां भी खत्म हो गई थी !शायद उसने खुद को जहनी तौर पर तैयार भी कर लिया था!
नए रिश्ते के लिए मेरा और उसका जो अभी चंद घंटों पहले बना था!
मैं गाड़ी से उतर गया! औरतें गाना गाने लगी!
हंसी-मजाक होने लगा!
लोग मुबारकबाद देने लगे! रात के 9:00 बजे मुझे उसके कमरे में भेजा गया!
वह सहमी सी कोई एक कोने में बैठी थी !
लालटेन की धीमी धीमी रोशनी जल रही थी !जिस पर दो चार कीड़े उड़ रहे थे!
मैंने पहले अपना कोट उतारा और खुद को लंद फंद से आजाद किया !
वह लंबा घूंघट किए हुए! शदीद गर्मी में भी सर झुकाए बैठी थी !
उसके लहंगे और भारी दुपट्टा उसके सर से घुटनों तक झूल रहा था !
मैंने बेड पर चादर को ध्यान से देखा शायद बेबी ने ही बनाया था !अपनी दहेज के लिए!
क्योंकि जब मैं अपनी बड़ी बहन को उसके ससुराल छोड़ने गया था!
तो उसे धूप में बैठी खाट पर चादर में कशीदाकारी करते हुए देखा था!
मैं जाकर उससे करीब बैठा , उसको मैंने उसके मुंह दिखाई के लिए चांदी का लॉकेट लिया था !
सोने की तो औकात नहीं थी!
मैंने उसका घूंघट उठाया और उसके हाथ में लॉकेट और चैन डाल दिया वह अभी सर झुकाए बैठी थी!
मैंने उंगली से उसका चेहरा ऊपर किया !
देखा तो लालटेन की रोशनी में उसका चेहरा चमक रहा था!
उस वक्त वह लाल जोड़े में अप्सरा जैसी लग रही थी!
मैंने अप्सरा तो नहीं देखा, पर पता नहीं बेबी को देखा ऐसा लगा कि अप्सरा ऐसी ही होती होंगी !
वह मुझे बहुत मासूम और नाजुक लग रही थी !
उसे मैंने पहले भी देखा था !पर आज मुझे बहुत खूबसूरत लगी!
क्या यह वही लड़की थी जिससे मैं शादी के लिए तैयार नहीं था!
या वह मेरी बीवी बन चुकी थी ,इसलिए वह मुझे हसीन लग रही थी!
मिलते फिर इसके अगले पार्ट में
कैसी लगी आप लोगों को ये कहानी plz कॉमेंट करके जरूर बताएं ।